रानी बूंदी के हाडा शासक की बेटी थी और उदयपुर (मेवाड़) के सलुम्बर ठिकाने के रावत रतन सिंह चुण्डावत की रानी थी | जिनकी शादी का गठ्जोडा खुलने सेपहले ही उसके पति रा
वत रतन सिंह चुण्डावत कोमेवाड़ के महाराणा राज सिंह (1653-1681) काऔरंगजेब के खिलाफ मेवाड़ की रक्षार्थ युद्धका फरमान मिला | नई-नई शादी होने और अपनी रूपवती पत्नी को छोड़ कर रावत चुण्डावत का तुंरत युद्ध में जाने का मन नही हो रहा था यहबात रानी को पता लगते ही उसने तुंरत रावत जी को मेवाड़ की रक्षार्थ जाने व वीरता पूर्वक युद्ध करने का आग्रह किया | युद्ध में जाते रावत चुण्डावत पत्नी मोह नही त्याग पा रहे थे सो युद्ध में जाते समय उन्होंने अपने सेवक को रानी के रणवास में भेज रानी की कोई निशानी लाने को कहा | सेवक के निशानी मांगने पर रानी ने यह सोच कर कि कहीं उसके पति पत्नीमोह में युद्ध से विमुख न हो जाए या वीरता नही प्रदर्शित कर पाए इसी आशंका के चलते इस वीर रानी ने अपना शीश काट कर ही निशानी के तौर पर भेज दिया ताकि उसका पति अब उसका मोह त्याग निर्भय होकर अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध कर सके | और रावत रतन सिंह चुण्डावत ने अपनी पत्नी का कटा शीश गले में लटका औरंगजेब की सेना के साथ भयंकर युद्ध किया और वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपनी मातृभूमि के लिए शहीद हो गया l ठाकुर कर्मवीर राजपूत शेयर पोस्ट &
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Jay-Hind
દેશ ભલે ભૂલે ભગતસિંહને પણ પાકિસ્તાનમાં આજે પણ તેની શહીદી જીવંત છે 04 Dec 2013 12:03, (4 Dec) લાહોરમાં ફવારા ચોકના નામને બદલે તેનું નામ ભગતસિંહ ચોક કરવાની માં
ગ કરાઈ રહી છે લાહોર: પાકિસ્તાન સરકારે ભલે અહી સ્કુલના અભ્યાસક્રમમાંથી સ્વતંત્રતા સંગ્રામના કેટલાક પાના ગાયબ કરી દીધા હોય પરંતુ આજે પણ પાડોસી દેશમાં કેટલાક લોકો એવા છે કે જે એ યાદોને સજાવી રાખવા માંગે છે. તેમને ભગતસિંહની શહીદી આજે પણ યાદ છે અને તેઓ લાહોર જેવા શહેરો સાથે ભગતસિંહના સંબંધોને જીવંત રાખવા માંગે છે. પાકિસ્તાનની લેફ્ટ વિંગ પાર્ટી અને વર્કસ પાર્ટીએ લાહોરમાં છેલ્લા કેટલાક સમયથી એક ઝુંબેશ ચલાવી રહ્યા છે. જે અંતર્ગત તેઓ લાહોરમાં આવેલા ફવારા ચોકના નામને બદલીને આ ચોકનું નામ ભગતસિંહ ચોક કરવાની માંગ કરી રહ્યા છે. ફવારા ચોક એ જગ્યા છે હિન્દુસ્તાન્નની આઝાદી માટે લડાઈ લડતા હતા ત્યારે અંગ્રેજો દ્વારા ભગતસિંહ,સુખદેવ અને રાજગુરુને ફાંસી આપવામાં આવી હતી. ત્યારે આ જગ્યા લાહોર જીલ્લા જેલની હદમાં હતી. લાહોર જેલ હવે કેમ્પ જેલ બની ચુકી છે અને ફાંસી વાળી જગ્યા એક ટ્રાફિક પોઈન્ટ બની ગયું છે. નોધનીય છે કે ભગતસિંહે પોતાના કોલેજના દિવસો લાહોરમાં વિતાવ્યા હતા જયારે તેમનું ગામ લાહોરથી નજીક હતું. &आज से पाँच हज़ार वर्ष पहले इस सारे संसार पर क्षत्रियों का शासक था। केवल पाँच हज़ार वर्ष मे हमारा इतना पतन हुआ की आज संसार मे सुई की नोक रखने बराबर हमारा शासन नहीं
। शासन आते हैं और चले जाते हैं। ये कोई बड़े पतन का सूचक नहीं है, लेकिन आज से पाँच हज़ार बरस पहले तक इस संसार के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी,तपस्वी और योद्धा वीर-शूरवीर क्षत्रिय समाज मे थे। आज ना हमारे पास शोर्य है ना पराकर्म है ना ज्ञान है और ना तपस्या। आज पंद्रह मिनिट खड़े रहने से ही पांच सात शूरवीर धरासाई हो जाते हैं , ये हमारी शारीरिक स्थिति है। मानसिक स्थिति ये है की हमे कोई कितना ही अच्छा कहता रहे हमारे भेज्जे मे वो बात घूसेगी ही नहीं। हमे इन पतन और पराभव के कारणों को ढूँढना पड़ेगा। हम चाहें जैसा जीवन जीना चाहे जिये और क्षत्रिय बने रहें ये संभव नहीं। भगवान राम के काल मे बाल्मीकी जी के आश्रम में राम लक्ष्मण और सीता बनवास काल मे दस वर्ष तक रहे। वो वरुण के वंशज बाल्मीकी ,उनके वंशज भील आज किस स्थिति मे जीवन जी रहे हैं ? ना उन्हे खाने का सलीका ना पीने का और ना बोलने और उठने-बैठने का। उनके इस आचरण का पतन कैसे हुआ ? जब किसी भी समाज का पतन होता है तो सबसे पहले वो समाज अपने धर्म को भूल जाता है। स्वधर्म क्या है उसको पहचानने की कोशिश नहीं करता और पाखंडी धर्मों को अपनाकर अपने धर्म को तिलांजलि दे देता है और तब उसके पास उत्थान का जो पहला साधन स्वधर्म होता है वो उसके हाथ से निकल जाता है। धर्म के नाम पर पाखंड में वो ठगा जाता है जिससे उसको ना सांसरिक और ना आध्यात्मिक क्षेत्र किसी प्रकार का लाभ मिलता है। इस तरह वो अपने स्वधर्म को बिलकुल भूल जाता है और फिर उसका पूरा समाज अपने इतिहास तक को भूल जाता है। संसार मे सायद ही कोई ऐसा समाज हो जिसके इतिहास मे हमारे जीतने महापुरुष पैदा हुये हों, और विभिन्न क्षेत्रों मे , ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसके अंदर हमारा महापुरुष पैदा नहीं हुआ और जिसने पूरे संसार मे अपनी ख्याति प्राप्त नहीं की हो। रोज दस हज़ार सैनिकों को मौत के घाट उतारने वाला भीष्म पितामह क्षत्रिय समाज मे पैदा हुआ और चींटी को भी मत मारो ये अहिंसा का उपदेश देना वाला भी क्षत्रिय समाज मे ही पैदा हुआ था। ज्ञान,तपस्या,वीरता तक की हमने प्रकाष्ठाएं तोड़ दी। संसार मे आज तक विश्वामित्र से लंबी तपस्या करने वाला तपस्वी पैदा नहीं हुआ। ज्ञान के क्षेत्र मे उपनिषद कहते हैं की क्षत्रियों ने सबसे पहले अपने स्वधर्म का ज्ञान पैदा किया और अपनी तपस्या से उस ज्ञान का विकास किया और उसके बाद तीनों वर्णो को उनके धर्म का ज्ञान करवाया। devi singh ji updesh